Wednesday, July 2, 2014

दुनिया की सबसे बड़ी इमारत

बुर्ज खलीफा 
विश्व की सबसे बड़ी इमारत कहाँ पर है?
सऊदी अरब के मक्का शहर में अब्राज अल बेयत टावर्स दुनिया की सबसे बड़ी इमारत है जिसमें तकरीबन 15 लाख वर्ग मीटर एरिया है। यह इमारत ऊँचाई के लिहाज से दुनिया की दूसरी सबसे ऊँची इमारत है। इसकी ऊँचाई 601 मीटर या 1972 फुट है। दुनिया की सबसे ऊँची इमारत है दुबई की बुर्ज खलीफा जो 828 मीटर ऊँची है। चीन के सिचुआन प्रांत के चेंगदू शहर में न्यू सेंचुरी ग्लोबल सेंटर बनाया गया है। चीन का दावा है कि यह दुनिया की सबसे बड़ी इमारत है। इसके अंदर कई शॉपिंग मॉल और होटल हैं। इस बिल्डिंग में सिडनी के 20 ऑपेरा हाउस या तीन पैंटागन आ सकते हैं। यह 400 मीटर चौड़ी और 1500 मीटर लंबी और 100 मीटर ऊंची है। इस साल 28 जून को पब्लिक के लिए खोली गई इस इमारत को बनाने में 3 साल लगे। इमारत में एक आर्टीफिशल सूर्य बनाया गया है जो 24 घंटे रोशनी और गर्मी देगा।







भारत में चंदन के पेड़ कहाँ पाए जाते हैं?
भारतीय चंदन का संसार में सर्वोच्च स्थान है। इसका आर्थिक महत्व भी है। यह पेड़ मुख्यत: कर्नाटक के जंगलों में मिलता है तथा देश के अन्य भागों में भी कहीं-कहीं पाया जाता है। भारत के 600 से लेकर 900 मीटर तक कुछ ऊँचे स्थल और मलयद्वीप इसके मूल स्थान हैं। वृक्ष की आयुवृद्धि के साथ ही साथ उसके तनों और जड़ों की लकड़ी में सुगंधित तेल का अंश भी बढ़ने लगता है। इसकी पूर्ण परिपक्वता में 60 से लेकर 80 वर्ष तक का समय लगता है। इसके लिए ढलवाँ जमीन, जल सोखने वाली उपजाऊ चिकनी मिट्टी तथा 500 से लेकर 625 मिमी. तक वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है।
किसी की उंगलियों के निशान से कोई अपराधी कैसे ठहराया जा सकता है?

फोरेंसिक विज्ञान के तहत अंगुलियों के निशानों से कई प्रकार के सबूत तैयार होते हैं। प्रकृति ने सभी जीवधारियों को अलग-अलग सांचों से ढालकर निकाला है। दो व्यक्तियों के हाथों और पैरों की अंगुलियों के निशान या उभार समान नहीं होते। इन्हें एपिडर्मल रिज कहते हैं। हमारी त्वचा जब दूसरी वस्तुओं के साथ सम्पर्क में आती है तब ये उभार उसे महसूस करने में मददगार होते हैं। साथ ही ये ग्रिप को बनाने में मददगार भी होते हैं। किसी भी वस्तु के साथ सम्पर्क होने पर ये निशान उसपर छूट जाते हैं। इसकी वजह वह पसीना है जो हमारी त्वचा को नर्म बनाकर रखता है। अकसर इन निशानों को हम अपनी आँख से देख नहीं पाते। ये निशान किसी खास स्थान पर व्यक्ति की उपस्थिति को साबित करते हैं। इससे अपराधी के विरुद्ध साक्ष्य बनता है। तमाम दस्तावेजों में जहाँ व्यक्ति दस्तखत नहीं कर पाता उसकी उंगलियों के निशान लिए जाते हैं। विज्ञान के विस्तृत होते दायरे में अब दूध का दूध और पानी का पानी अलग करना कहीं ज्यादा आसान हो गया है। इसके लिए जिस तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है उसे क्रिमिनोलॉजी कहते हैं। इसके तहत फोरेंसिक जांच की जाती है जिसके फलस्वरूप इसमें संदेह की लेशमात्र भी गुंजाइश नहीं रहती। फोरेंसिक साइंस विज्ञान की ही एक शाखा है जिसमें जीव विज्ञान के अतिरिक्त भौतिक, रसायन आदि के सिद्धांतों का भी उपयोग चीजों को विश्लेषित करने में किया जाता है। विज्ञान के अनुसार भले ही ये निशान फौरी तौर पर लगभग एक जैसे दिखाई पड़े, पर उनमें समानता नहीं होती बल्कि जमीन आसमान का अंतर होता है। इस अंतर का पता सूक्ष्म विश्लेषण द्वारा ही लगाया जा सकता है।

फरीदकोट हाउस कहाँ पर है?

दिल्ली के कोपरनिकस मार्ग पर फरीदकोट हाउस है। फरीदकोट पंजाब की एक पुरानी देशी रियासत थी। अंग्रेजी राज में दिल्ली में देशी रियासतों के प्रतिनिधियों के रहने की व्यवस्था थी। दिल्ली में हैदराबाद हाउस, बड़ौदा हाउस, धौलपुर हाउस, बीकानेर हाउस, कपूरथला हाउस जैसे अन्य भवन भी हैं।

मिर्ज़ा ग़ालिब की रिहाइश पर रोशनी डालें।

मिर्ज़ा असद-उल्लाह बेग ख़ां उर्फ “ग़ालिब” (27 दिसंबर 1796–15फरवरी 1869) उर्दू एवं फ़ारसी भाषा के महान शायर थे। इनको उर्दू का सार्वकालिक महान शायर माना जाता है और फ़ारसी कविता के प्रवाह को हिन्दुस्तानी जबान में लोकप्रिय करवाने का भी श्रेय दिया जाता है। ग़ालिब (और असद) नाम से लिखने वाले मिर्ज़ा मुग़ल काल के आख़िरी शासक बहादुर शाह ज़फ़र के दरबारी कवि भी रहे थे। उन्होंने अपना ज्यादातर वक्त आगरा, दिल्ली और कलकत्ता में गुज़ारा। उनका जन्म आगरा मे एक सैनिक पृष्ठभूमि वाले परिवार में हुआ था। अपने पिता और चाचा को उन्होंने बचपन मे ही खो दिया था। उनका जीवनयापन मूलत: अपने चाचा की पेंशन से होता था। उनके चाचा ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी मे सैन्य अधिकारी थे। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा के बारे मे कुछ कहा नहीं जा सकता लेकिन ग़ालिब के अनुसार उन्होंने 11 साल की उम्र से ही उर्दू एवं फ़ारसी मे गद्य तथा पद्य लिखने आरम्भ कर दिया था। 13 साल की आयु मे उनका विवाह नवाब इलाही बख्श की बेटी उमराव बेगम से हो गया था। विवाह के बाद वह दिल्ली आ गए थे जहाँ उनकी तमाम उम्र बीती। अपनी पेंशन के सिलसिले मे उन्हें कोलकाता की लम्बी यात्रा भी करनी पड़ी थी। इसका ज़िक्र उनकी ग़ज़लों में जगह–जगह पर मिलता है। सन 1850 में शहंशाह बहादुर शाह ज़फ़र उन्हें "दबीर-उल-मुल्क" और "नज़्म-उद-दौला" के खिताब से नवाज़ा।

न था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता तो ख़ुदा होता,

डुबोया मुझको होने ने न मैं होता तो क्या होता!

हुआ जब गम से यूँ बेहिश तो गम क्या सर के कटने का,

ना होता गर जुदा तन से तो जहानु पर धरा होता!

हुई मुद्दत कि 'ग़ालिब' मर गया पर याद आता है,

वो हर इक बात पर कहना कि यूँ होता तो क्या होता!

बरमूडा ट्राएंगिल क्या है? लोग कहते हैं कि यहाँ जाकर लोग गुम हो जाते हैं। क्या यह सच है?
बरमूडा त्रिकोण को शैतान के त्रिकोण का नाम भी दिया गया है। यह उत्तर पश्चिम अटलांटिक महासागर का एक क्षेत्र है जिसमें कुछ विमान और गायब हो गए हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण है 5 दिसम्बर 1945 को अमेरिकी नौसेना के पाँच टीबीएम एवेंजर बमवर्षक विमानों की गुमशुदगी। ये विमान फ्लोरिडा के एक नौसैनिक बेस से उड़े थे। इनका पता नहीं लगा। इनपर सवार 14 नौसैनिकों का पता भी नहीं लगा। इन्हें खोजने गया विमान भी दुर्घटनाग्रस्त हो गया जिसमें 13 नौसैनिक थे। इसके बाद इस इलाके से कई विमान और पोत लापता हो गए। त्रिकोण के बारे में उल्लेख करने वाला पहला व्यक्ति क्रिस्टोफर कोलंबस था, जिसने सन 1492 के अपने दस्तावेजों में लिखा कि उसने और उसके चालक दल ने, " क्षितिज पर नृत्य करती अद्भुत रोशनी देखी।" अपनी लॉग बुक में एक अन्य स्थान पर उसने लिखा, आकाश में आग की लपटें थी। बरमूडा ट्रायंगल के बारे में तमाम अवधारणाएं हैं, पर वैज्ञानिक मानते हैं कि ये सामान्य दुर्घटनाएं भी हो सकतीं हैं। सागर में तूफान वगैरह के कारण या दूसरे कारणों से उनका पता नहीं लग पाया। सन 1854 से इस क्षेत्र में कुछ ऐसी घटनाएं होती रही हैं कि इसे 'मौत के त्रिकोण' के नाम से जाना जाता है।


यह सब किन कारणों से हो रहा है, यह कोई भी निर्णयात्मक रूप से कोई बता नहीं पाया है। चार्ल्‍स बर्लिट्ज ने 1974 में अपनी एक पुस्‍तक के द्वारा इस रहस्‍य की पर्तों को खोजने का दावा किया था। उसने अपनी पुस्‍तक 'दा बरमूडा ट्राइएंगिल मिस्‍ट्री सॉल्‍व्‍ड' में लिखा था कि यह घटना जैसी बताई जाती है, वैसी है नहीं। पायलट अनुभवी नहीं थे। सम्‍भवतः उनके दिशा सूचक यंत्र में खराबी होने के कारण खराब मौसम में एक दूसरे से टकरा कर नष्‍ट हो गए। कुछ रसायन शास्त्रियों का मत है कि इस क्षेत्र में 'मीथेन हाइड्रेट' नामक रसायन इन दुर्घटनाओं का कारण है। समुद्र में बनने वाला यह हाइड्राइट जब अचानक ही फटता है, तो अपने आसपास के सभी जहाजों को चपेट में ले सकता है। हाइड्राइट के विस्‍फोट के कारण डूबा हुआ जहाज जब समुद्र की अतल गहराई में समा जाता है, तो वहॉं पर बनने वाले हाइड्राइट की तलछट के नीचे दबकर गायब हो जाता है। अमेरिकी भौ‍गोलिक सर्वेक्षण के अनुसार बरमूडा की समुद्र तलहटी में मीथेन का अकूत भण्‍डार हुआ है।

हिन्दुस्तान में हीरे की खानें कहाँ है?

भारत में आंध्र प्रदेश के गोलकुंडा और तमिलनाडु के कोल्लूर तथा मध्य प्रदेश के पन्ना और बुंदर में हीरा खानें हैं। भारत के हीरे क ज़माने में विश्व प्रसिद्ध थे। गोलकुंडा से 185 कैरेट का दरिया-ए नूर हीरा ईरान गया था। भारत के सबसे बड़े हीरे की बात करें तो नाम आता है ग्रेट मुगल का । गोलकुंडा की खान से 1650 में जब यह हीरा निकला तो इसका वजन 787 कैरेट था। यानी कोहिनूर से करीब छह गुना भारी। कहा जाता है कि कोहिनूर भी ग्रेट मुगल का ही एक अंश है। 1665 में फ्रांस के जवाहरात के व्यापारी ने इसे अपने समय का सबसे बड़ा रोजकट हीरा बताया था। यह हीरा आज कहां है किसी को पता नहीं। लंबे समय से गुमनाम भारतीय हीरों की सूची में आगरा डायमंड और अहमदाबाद डायमंड भी शामिल हैं। अहमदाबाद डायमंड को बाबर ने 1526 में पानीपत की लड़ाई के बाद ग्वालियर के राजा विक्रमजीत को हराकर हासिल किया था। तब 71 कैरेट के इस हीरे को दुनिया के 14 बेशकीमती हीरों में शुमार किया जाता था। हल्की गुलाबी रंग की आभा वाले 32.2 कैरेट के आगरा डायमंड को हीरों की ग्रेडिंग करने वाले दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित संस्थान जेमोलॉजिकल इंस्टीट्यूट ऑफ अमेरिका ने वीएस-2 ग्रेड दिया है। द रीजेंट की कहानी भी कुछ ऐसी ही हैं। 1702 के आसपास यह हीरा गोलकुंडा की खान से निकला। तब इसका वजन 410 कैरेट था। मद्रास के तत्कालीन गवर्नर विलियम पिट के हाथों से होता हुआ द रीजेंट फ्रांसीसी क्रांति के बाद नेपोलियन के पास पहुंचा। नेपोलियन को यह हीरा इतना पसंद आया कि उसने इसे अपनी तलवार की मूठ में जड़वा दिया। अब 140 कैरेट का हो चुका यह हीरा पेरिस के लूव्र म्यूजियम में रखा गया है। गुमनाम भारतीय हीरों की लिस्ट में अगला नाम है ब्रोलिटी ऑफ इंडिया का। 90.8 कैरेट के ब्रोलिटी को कोहिनूर से भी पुराना बताया जाता है। 12वीं शताब्दी में फ्रांस की महारानी में इसे खरीदा। कई सालों तक गुमनाम रहने के बाद यह हीरा 1950 में सामने आया। जब न्यूयॉर्क के जूलर हेनरी विन्सटन ने इसे भारत के किसी राजा से खरीदा। आज यह हीरा यूरोप में कहीं है।


शादियों या पार्टियों के कार्ड में नीचे लिखा रहता है RSVP. इसका मतलब क्या है?

रेस्पांदे सी वु प्ले (Respondez Sil Vous Plait)। इस फ्रेंच वाक्यांश में विनम्रता से पूछा गया है कृपया बताएं आ रहे हैं या नहीं।

मिस्र यानी इजिप्ट में अभी जो क्रांति आई थी, उसे सोशल मीडिया की क्रांति कहा गया ऐसा क्यों?

सन 2011 के जनवरी महीने में ट्यूनीशिया से उठी क्रांति की आग की चिनगारियाँ मिस्र पहुँची थीं। बाद में आग की लपटें यमन, जॉर्डन होते हुए दूसरे अरब देशों में पहुँचीं। इसे बढ़ाने में सोशल मीडिया की जबरदस्त भूमिका थी। दशकों से तानाशाही झेल रही अफ्रीकी और मध्य पूर्वी देशों की जनता ने इंटरनेट और मोबाइल फोन को बेड़ियां काटने का औजार बना डाला है। फेसबुक पर कैंपेन छिड़ गया। मिस्र में जब मोबाइल सेवाएं रोकी गईं तो ट्वीट और फेसबुक के जरिए प्रदर्शन की तैयारियां की गईं। सोशल मीडिया और न्यूज चैनलों ने मिलकर आंदोलन की हर पल की खबर दुनिया तक पहुंचाई। इसके पहले 2005 में लेबनॉन में ब्लॉगिंग की ताकत दिखी थी।

विश्व की सबसे लम्बी कविता कौन सी है?

माना जाता है कि महाभारत दुनिया की सबसे लम्बी कविता है। इसमें एक लाख से ज्यादा श्लोक हैं और लगभग बीस लाख शब्द हैं। प्रसिद्ध ग्रीक महाकाव्य इलियाड और ओडिसी को एक साथ मिला लें तब भी महाभारत उनका दस गुना ग्रंथ साबित होगा।

फैट जीन क्या है?

ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने ‘एफटीओ’ नामक विशेष कोशिका खोज निकाली है, जिसकी वजह से खासकर भारतीय मूल के लोगों में मोटापा, हृदयघात और मधुमेह जैसी बीमारियां देखने को मिलती हैं। इस खास जीन से यह भी जानकारी मिलेगी कि एक प्रकार की जीवनशैली के बावजूद कुछ लोगों का शरीर दुरुस्त रहता है, लेकिन कुछ मोटे हो जाते हैं। “जिनके शरीर में यह खास किस्म का जीन पाया जाता है, उन्हें अगर एक प्रकार का आहार दिया जाए, तो वह उन लोगों के मुकाबले अपना वजन बढ़ा हुआ महसूस करते है, जिनके शरीर में यह जीन नहीं होता है।” मोटापे का अध्ययन कर रहे वैज्ञानिकों का कहना है कि शरीर में चर्बी बढ़ने के लिए जीन जिम्मेदार है। वैज्ञानिकों का यह भी दावा है कि इस जीन को खोज लिया गया है, जो कोशिकाओं में चर्बी जमा होने के लिए जिम्मेदार हैं। खोज से अनेक बीमारियों के उपचार और छुटकारा पाने की संभावना जताई गई है। फिट-1 व फिट-2 (फैट इंड्यूसिंग ट्रांसक्रिप्ट 1-2) नामक जीन की पहचान की है। इन दोनों जीनों में 50 प्रतिशत तक समानता है।

भारत में सबसे पहली ट्रेन यात्रा कहाँ से शुरू हुई थी?

16 अप्रैल 1853 को मुम्बई और ठाणे के बीच जब पहली रेल चली, उस दिन सार्वजनिक अवकाश था। ग्रेट इंडियन पेनिनसुला रेलवे के 14 डिब्बों वाली उस गाड़ी के आगे एक छोटा फॉकलैंड नाम का भाप इंजन लगा था। पहली ट्रेन ने 34 किलोमीटर का सफर किया। भारत में रेल की शुरुआत की कहानी अमेरिका के कपास की फसल की विफलता से जुड़ी हुई है, जहां वर्ष 1846 में कपास की फसल को काफी नुकसान पहुंचा था| इसके कारण ब्रिटेन के मैनचेस्टर और ग्लासगो के कपड़ा कारोबारियों को वैकल्पिक स्थान की तलाश करने पर विवश होना पड़ा था| ऐसे में भारत इनके लिए मुफीद स्थान था| अंग्रेज़ों को प्रशासनिक दृष्टि और सेना के परिचालन के लिए भी रेलवे का विकास करना तर्क संगत लग रहा था| ऐसे में 1843 में लॉर्ड डलहौजी ने भारत में रेल चलाने की संभावना तलाश करने का कार्य शुरु किया| डलहौजी ने बम्बई, कोलकाता, मद्रास को रेल सम्पर्क से जोड़ने का प्रस्ताव किया। इस पर अमल नहीं हो सका| इस उद्देश्य के लिए साल 1849 में ग्रेट इंडियन पेंनिनसुलर कंपनी कानून पारित हुआ और भारत में रेलवे की स्थापना का मार्ग प्रशस्त हुआ।

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