Tuesday, July 21, 2015

इमोजी यानी पढ़ो नहीं देखो, मन के भावों की भाषा

पढ़ना और लिखना बेहद मुश्किल काम है. इंसान ने इन दोनों की ईज़ाद अपनी जरूरतों के हिसाब से की थी. पर यह काम मनुष्य की प्रकृति से मेल नहीं खाता. भाषा का विकास मनुष्य ने किस तरह किया, यह शोध का विषय है. भाषाएं कितने तरह की हैं यह जानना भी रोचक है. पर यह सिर्फ संयोग नहीं कि दुनिया भर में सबसे आसानी से चित्र-लिपि को ही पढ़ा और समझा जाता है. सबसे पुरानी कलाएं प्रागैतिहासिक गुफाओं में बनाए गए चित्रों में दिखाई पड़ती हैं. और सबसे आधुनिक कलाएं रेलवे स्टेशनों, सार्वजनिक इस्तेमाल की जगहों और हवाई अड्डों पर आम जनता को रास्ता दिखाने वाले संकेत चिह्नों के रूप में मिलती हैं. इन्हें दुनिया के किसी भी भाषा-भाषी को समझने में देर नहीं लगती.

देखना मनुष्य की स्वाभाविक क्रिया है. कम्प्यूटर को लोकप्रिय बनाने में बड़ी भूमिका उसकी भाषा और मीडिया की है. पर कम्प्यूटर अपने साथ नई भाषा लेकर भी आया है. मीडिया हाउसों के लिए सन 1985 में ऑल्डस कॉरपोरेशन ने जब अपने पेजमेकर का पहला वर्ज़न पेश किया तब इरादा किताबों के पेज तैयार करने का था. उन्हीं दिनों पहली एपल मैकिंटॉश मशीनें तैयार हो रहीं थीं, जो इस लिहाज से क्रांतिकारी थीं कि उनकी कमांड स्क्रीन पर देखकर दी जाती थीं. ये कमांड की-बोर्ड की मदद से दी जा रहीं थीं और माउस की मदद से भी.


कम्प्यूटर की चित्र-भाषा
चालीस के दशक में ट्रैकबॉल की अवधारणा बनी और साठ के दशक में माउस का पेटेंट हुआ, पर उसकी उपयोगिता सत्तर और अस्सी के दशक में समझ में आई. माइक्रोसॉफ्ट डॉस (डिस्क ऑपरेटिंग सिस्टम) की जगह पर विंडोज़ के आने तक सामान्य व्यक्ति के लिए पीसी पर काम करना काफी मुश्किल था. कम्प्यूटर को लोकप्रिय बनाने में जितनी भारी भूमिका माइक्रो चिप्स की है, उसे कम्प्यूटर के ऑपरेटिंग सिस्टमों को संचालित करने वाली चित्र-भाषा यानी आयकन की भूमिका उससे कम नहीं है. कम्प्यूटर स्क्रीन पर इन आयकनों की तादाद बढ़ती जा रही है, टच-स्क्रीन ने कहानी पूरी तरह बदल दी है. माउस की भूमिका भी या तो खत्म होगी या बदलेगी, पर एक बात सर्वमान्य है कि सिर्फ देखकर या इशारे से काम को हम सबसे पहले ग्रहण करते हैं.

वैश्विक प्रतीक तेजी से बदल रहे हैं. भाषा का मतलब केवल लिखित भाषा नहीं रह गया है. कार के हॉर्न की आवाज, एम्बुलेंस के सायरन, ट्रैफिक कांस्टेबल के संकेतों का अर्थ, मेट्रो का दरवाजा खुलना और बंद होना तथा दूर से आती रेलगाड़ी का वेग उसकी आवाज़ बताती है. व्यक्ति ने समय के साथ जो बॉडी लैंग्वेज तैयार की है उससे परिचित होना भी आज की साक्षरता की निशानी है. वह पढ़ना जानता भी हो और इलेक्ट्रॉनिक टेक्स्ट पढ़ना नहीं जानता, तो सब बेकार.

केवल बच्चों का मनोरंजन नहीं
हमारी लिपियों में हाल में स्माइली शामिल हो गई और हमें पता नहीं चला. अब पिक्टोग्राफ, ईडियोग्राम्स और इमोटिकॉन्स का ज़माना है, जिनमें सबसे ज्यादा धूम मचा रहा है इमोजी. शुरू में इमोजी कई तरह की भावनाओं को व्यक्त करने वाले मनोरंजक चेहरे मात्र थे. अब वे एनिमेटेड भी हैं यानी चलते-फिरते, रोते-हँसते, गाते-मुस्कराते हैं. इनकी तादाद बढ़ती जा रही है. पहले ये सिर्फ बच्चों का मनोरंजन करते थे, पर अब ये बड़ों के मन की बात भी कह रहे हैं और संजीदा भाषा की जगह ले रहे हैं. इमोजी जापानी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है पिक्टोग्राफ यानी चित्र. ‘इ’ माने चित्र और ‘मोजी’ पात्र या चरित्र. चूंकि जापान में बने हैं, इसलिए शुरूआती इमोजी में जापानी संस्कृति की झलक मिलती है, पर अब तो वैश्विक इमोजी आ रहे हैं.

जापान में व्यावसायिक संस्थाओं ने अपने इमोजी तैयार कराए हैं. इनकी लोकप्रियता देखते हुए इन्हें यूनीकोड में शामिल कर लिया गया है और अब ये किसी भी भाषा के यूनीकोड में अक्षरों के रूप में लिखे जा सकते हैं. सन 2011 में एपल आईओएस यानी मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम में इन्हें शामिल कर लेने के बाद इनकी लोकप्रियता तेजी से बढ़ी. इसके बाद एंड्रॉयड और दूसरे ऑपरेटिंग सिस्टम में भी ये शामिल हो गए.


पहला इमोजी नब्बे के दशक में
पहला इमोजी सन 1998 या 99 में जापानी टेलीकॉम कम्पनी एनटीटी डोकोमो के कर्मचारी शिगेताका कुरीता ने बनाया. वह इस कम्पनी के आई-मोड मोबाइल इंटरनेट प्लेटफॉर्म की टीम का सदस्य था. वह न तो डिज़ाइनर था और न कम्प्यूटर इंजीनियर. वह अर्थशास्त्र पढ़कर आया था. उस समय तक तकनीक का इतना विकास भी नहीं हुआ था. उसके चित्र काफी सरल थे. शुरू में उसने 12X12 पिक्सेल के 172 इमोजी बनाए गए, जिनका इस्तेमाल इलेक्ट्रॉनिक कम्युनिकेशन के लिए किया गया और अपनी सेवा को दूसरों से अलग दिखाने के लिए भी. पर पिक्टोग्राफ का चलन पहले से था.

चित्र बनाकर भावना की अभिव्यक्ति आज नहीं हजारों साल पहले से चला आ रहा है. तीस के दशक में लंदन के सब वे में संकेत चिह्नों के रूप में इनका इस्तेमाल होने लगा था. मूवेबल टाइप के आविष्कार के बाद छपाई में डिंगबैट यानी सजावटी कैरेक्टर के रूप में ये पहले से उपस्थित थे. नब्बे के दशक में माइक्रोसॉफ्ट ने विंगडिंग को फॉण्ट में शामिल करके इन चित्राक्षरों की पूरी सीरीज़ को कम्प्यूटर में प्रवेश दिलाया. इनसे ही इमोटिकॉन्स की शुरुआत हुई. यूनीकोड ब्लॉग के मुताबिक़, इमोजी के अधिकांश संकेत लंबे समय से इस्तेमाल होने वाले विंगडिंग्स और वेबडिंग्स फॉण्ट से निकाले गए हैं.

पहले आया स्माइली
इमोजी से पहले इमोटिकॉन्स कम्प्यूटर में आ चुके थे. शिगेताका कुरीता के पहले 1996 में लंदन में स्माइली कम्पनी के निकोलस लूफ्रानी ने स्माइली चेहरे बना लिए थे. सन 1997 में उनका युनाइटेड स्टेट्स में कॉपीराइट भी ले लिया गया था. 1998 तक स्माइली वैब-जगत में प्रवेश पा चुके थे. उन्होंने स्माइलीडिक्शनरी डॉट कॉम नाम से वैबसाइट बनाकर मोबाइल फोन में डाउनलोड करने की सुविधा भी सन 2000 में शुरू कर दी. सन 2002 में ये स्माइली एक पुस्तक के रूप में भी प्रकाशित किए गए। लूफ्रानी ने तमाम टेलीकॉम कम्पनियों को इसके लाइसेंस भी दिए. वस्तुतः इस कला को स्माइली ने ही लोकप्रिय बनाया.

क्या लिखित भाषा खत्म होगी?
करोड़ों इंटरनेट यूजर आज कल लिखने के बजाय इमोजी का इस्तेमाल करते हैं. यह ज्यादातर मामलों में समय बचाने के लिए किया जाता है. सवाल है कि क्या ये इमोजी पारंपरिक भाषा को खत्म कर देंगे? गुफा मानव लकड़ी के कोयले से लकीरें खींचकर अपनी बात लिखता था. आज हम स्मार्ट फोन पर यही काम कर रहे हैं. विषय भी बदले हैं. हाथियों, शेरों और दूसरे जंगली जानवरों की तस्वीरें, आग और भाले फेंकते लोगों की आकृतियों की जगह हम दैत्यों से लेकर चुलबुले जोकरों के चेहरों, हवाई जहाज, मेज, कुर्सी से लेकर फूल-पत्ती तक का इस्तेमाल करते हैं. ये छोटे चिह्न अब हर जगह उपलब्ध है. व्हॉट्सऐप, फेसबुक और ट्विटर में बड़े पैमाने पर इनका इस्तेमाल हो रहा है.

कुछ भाषाविद् कहते हैं इमोटिकॉन के बढ़ते चलन के कारण लिखित भाषा का इस्तेमाल कम हो रहा है. डिजिटल युग के लोग लिखित रूप से खुद को व्यक्त करने में आलसी हैं. लेकिन कुछ विशेषज्ञ कहते हैं कि यह भाषा का विकास है. इमोजी रचनात्मक का प्रतीक है. लिखित संदेश में भाव या फिर इशारे व्यक्त कर पाना मुश्किल है. इसकी कमी इमोटिकॉन पूरी कर रहे हैं. ये चिह्न विडंबना या कटाक्ष व्यक्त करते हैं. वास्तविक बातचीत की ही तरह हम डिजिटल संवाद में भी इनकी मदद से भावनात्मक संबंध बनाए रख सकते हैं. इन चिह्नों का इस्तेमाल हर जगह और हर वक्त नहीं होता. खास तरह के संवाद में ही ये काम आते हैं. टेक्स्ट मैसेजिंग, व्हॉट्सऐप. ट्विटर या चैट में पूरे वाक्य का ये विकल्प हैं. ये अक्षर बचाते हैं.

चैटिंग के दौरान इमोजी की लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही है. फेसबुक और व्हॉट्सऐप जैसे प्लेटफॉर्म पर स्माइली प्रतीकों का इस्तेमाल न सिर्फ टेक्स्ट लिखने में लगने वाला समय बचाता है बल्कि मैसेज को और आकर्षक बनाता है. एक रिपोर्ट के मुताबिक हँसने वाले इमोजी का इस्तेमाल सभी सोशल प्लेटफॉर्म पर दुनियाभर में सबसे अधिक होता है जबकि ट्विटर पर दिल का इमोजी सबसे ज्यादा लोकप्रिय है.

इमोजी इतने लोकप्रिय क्यों हैं?
एक अनुमान है कि तकरीबन 47 करोड़ इमोजी अकेले ट्विटर संदेशों के साथ नत्थी होकर साइबर आकाश में हर वक्त विचरण करते हैं. जुलाई 2013 से शुरू हुई वैबसाइट इमोजी ट्रैकर ने अबतक ट्विटर पर 10.1 अरब इमोजी दर्ज किए हैं. फेसबुक और ईमेल में भी यही स्थिति है. कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी की कम्प्यूटर लैब का निष्कर्ष है कि इमोजी का इस्तेमाल करने वाले ट्वीट लोकप्रिय भी होते हैं. फेसबुक पर कमेंट के साथ या केवल कमेंट के रूप में आप इनका इस्तेमाल देख सकते हैं. अब लोग केवल इमोजी पर ही पूरा संदेश लिखने लगे हैं, औपचारिक भाषा के शब्दों के बगैर.

लोकप्रियता तो स्माइली ने ही स्थापित कर दी थी. इमोजी ने तस्वीरों में टोन, गहराई और ह्यूमर को बढ़ाया, साथ ही तकनीक के साथ तादात्म्य बैठाया. उसने चेहरों को नयापन दिया, क्यूट बनाया और तमाम तरह के पात्र इसमें शामिल किए. एनीमेशन के कारण इनकी लोकप्रियता और बढ़ी. खासतौर से टेक्स्ट मैसेज को सार्थक बनाने में इनकी बड़ी भूमिका है. मसलन आप किसी जवाब से खुश हैं तो मुस्कराता चेहरा, नाराज हैं तो नाराजगी, समझ में नहीं आया तो बुद्धू चेहरा, विस्मय है तो विस्फरित आँखें वगैरह. इमोजी ने भावनाओं की लम्बी सूची तैयार कर दी है. एक खिलता फूल, धड़कता दिल और मुस्कराती आँखें संदेश को नया मतलब प्रदान कर देती हैं. किस करता चेहरा, फ्लाइंग फेंकता चेहरा, झूमता चेहरा और बंद आँखों वाला चेहरा.
इमोजी में सिर्फ चेहरे ही नहीं हैं. उनमें हैम्बर्गर, केक से लेकर मछलियाँ, पक्षी, चाँद-सितारे, सूरज, आकाश, पेड़-पौधे और सब कुछ है. हांगकांग में सामाजिक व्यवहार का अध्ययन करने वाले एक शोध से पता लगा है कि संदेश के साथ इमोजी होने पर संदेश पाने वाले को संदेश भेजने वाले के इरादों को लेकर ज्यादा भरोसा होता है. अमेरिका के मिज़ूरी विवि के एक रिसर्च से पता लगा है कि चाहे ई-मेल हो या लव लेटर. पाने वाला भेजने वाले को पसंद करने लगता है. वस्तुतः सोशल मीडिया में बढ़ती नफरत, घृणा और कड़वाहट के बीच इमोजी के संदेश प्यारे लगते हैं. इनके मार्फत किया गया गुस्से का इज़हार भी वितृष्णा पैदा नहीं करता.

नब्बे के दशक में जब पहले इमोजी सामने आए तब जापानी किशोरों के बीच पेजर लोकप्रिय थे. पेजर पर लम्बे-लम्बे वाक्य लिखने के मुकाबले ऐसे चित्रों से भावनाओं की अभिव्यक्ति बेहतर होने लगी और बच्चों को वे मजेदार भी लगे. वास्तव में यह एक नई भाषा का जन्म था. उसके बाद टेक्स्ट मैसेज जब शुरू हुए तो पूरे शब्दों की जगह केवल सांकेतिक अक्षरों के इस्तेमाल का चलन शुरू हुआ. व्याकरण के सारे नियमों को भुला दिया गया. पिछले महीने शोव्रोले कार कम्पनी ने पूरा प्रेस नोट इमोजी में लिखकर जारी किया. इस प्रेस नोट में कहा गया है कि सन 2016 में आने वाली कार ‘शेवी क्रूज़’ का वर्णन शब्द नहीं कर सकते.

तकनीकी समर्थन
इस काम के लिए तकनीकी सुविधाएं भी बढ़ीं हैं. अब emoj.li इमोजी-ओनली सोशल नेटवर्किंग एप भी उपलब्ध है और आप इस भाषा को समझ न पा रहे हों तो emojipedia.org और emojisaurus.com जैसी वैबसाइटें उपलब्ध हैं जो इमोजी संदेश का अनुवाद कर देंगी. इस दिशा में कई तरह के प्रयोग हो रहे हैं. हरमन मेल्विल का मशहूर उपन्यास ‘मोबी डिक’ इमोजी डिक के रूप में अनूदित हो चुका है. इसे अनुवाद करने के लिए बनी क्राउडफंडेड परियोजना में 800 दीवानों ने 37,95,980 सेकंड का अपना समय देकर इसे पूरा किया. पिछले साल अमेरिकी गायिका बेयोंस के गाये ‘ट्रक इन लव’ का इमोजी वीडियो बनाया गया है, जिसे https://vimeo.com/88073857 पर देखा जा सकता है.

भाषाओं के प्रयोग को मॉनिटर करने वाली संस्था ‘ग्लोबल लैंग्वेज मॉनिटर’ ने पिछले साल के अंत में हार्ट इमोजी (यानी दिल) को सन 2014 का सबसे ज्यादा प्रयुक्त शब्द घोषित किया. वैबसाइट  http://emojitracker.com/ हर वक्त यह जानकारी देती रहती है कि ट्वीट में किस इमोजी का कितना इस्तेमाल हो रहा है.

सन 2010 में यूनीकोड कंसोर्शियम ने इमोजी के कोड बनाने का काम शुरू कर दिया. यह संस्था जिन चिह्नों के कोड जारी करती है, वे दुनिया की किसी भी डिवाइस पर एक जैसे नजर आते हैं. इसने दुनिया की सभी भाषाओं के अक्षरों को कोड दिए हैं. अब यूनीकोड ने शार्क, ह्वेल से लेकर हैम्बर्गर तक के इमोजी के कोड बनाने शुरू कर दिए. शुरू में 722 इमोजी इसमें शामिल किए गए. फिर 2012 में कुछ और शामिल किए गए. 2014 में इसमें 250 और जुड़े. इस साल 37 और जोड़े गए हैं. इस वक्त यूनीकोड इमोजी की संख्या 1281 है.

पहले एपल फोन ने फिर एंड्रॉयड तथा अन्य ऑपरेटिंग सिस्टमों में इमोजी को जगह दी गई. इससे इनकी लोकप्रियता और बढ़ी. एपल अपने नए सॉफ्टवेयर 8.3 के अपडेट में अब हर हाव-भाव दर्शाने के लिए पाँच रंगत वाले काले, गोरे और भूरे रंग के चेहरे डाले गए हैं. इन इमोजी के ज़रिए बताने की कोशिश की गई है कि दुनिया अलग-अलग किस्म के लोगों से बनी है और उसकी झलक तकनीक में भी दिखाई देनी चाहिए.

अपना इमोजी बनाइए
अभी तक आप किसी दूसरे के इमोजी का इस्तेमाल अपनी भावना व्यक्त करने के लिए कर रहे थे. अब आप चाहें तो अपनी शक्ल को इमोजी में बदल सकते हैं. इसके लिए सॉफ्टवेयर उपलब्ध हैं. ऑनलाइन बनाने के लिए एप उपलब्ध हैं. नीचे कुछ वैबसाइट दी हैं, जो आपको आपकी शक्ल का इमोजी बनाकर देंगी और आप चाहेंगे तो फेसबुक और ट्विटर पर शेयर भी कर देंगी. मसलन अपना इमोजी बनाने के लिए www.luxand.com/smileys/ पर जाएं. अपलोड योर फोटो पर क्लिक करें. अपने कंप्यूटर से अपना कोई ऐसा फोटो अपलोड करें जिसमें आप सामने की तरफ देख रहे हों. जैसा आपका पासपोर्ट फोटो होता है. इसके बाद जेंडर सिलेक्ट करें. इसके बाद गो बटन पर क्लिक कीजिए. कुछ देर बाद आपको अपनी शक्ल के इमोजी एनीमेशन में यानी नाचते-गाते मुस्कराते दिखाई देंगे. आपको पसंद हो तो सिलेक्ट करके डाउनलोड कर लें. खुद खोजें और मौका लगे तो इन साइट्स पर जाएं- http://emojimyface.com/, http://www.myemojicreator.com/, http://www.cnet.com/how-to/how-to-make-your-own-emojis/

प्रभात खबर के 'नॉलेज' पेज पर प्रकाशित

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