Thursday, September 10, 2015

पर्स रखने और बेल्ट बाँधने का चलन कब से और कहाँ से शुरू हुआ?

शब्द बटुआ या वॉलेट सैकड़ों साल से प्रचलन में है. आज आप जो चमड़े का पर्स जेब में रखते हैं वह भी यूरोप में अठारहवीं सदी के अंतिम वर्षों में प्रचलन में आ गया था. पुराने ज़माने में इसमें सिक्के रखे जाते थे. कागज़ के नोटों का चलन सातवीं से ग्यारहवीं सदी के बीच चीन में शुरू हुआ. हमारे देश में पुरानी पोटली मध्य युग में डोरी लगे बटुए का रूप ले चुकी थी. जहाँ तक पेटी या बेल्ट का प्रश्न है, यह भी पुराने कमरबंद का नया रूप है. इसका इस्तेमाल इंसान ने ताम्रयुग से शुरू कर दिया था. आधुनिक चमड़े की बेल्ट का इस्तेमाल उन्नीसवीं सदी में फौजी वर्दी के साथ शुरू हुआ था.

दिल्ली को दिल्ली एनसीआर क्यों कहते हैं?


दिल्ली को कई तरह से जाना जाता है. एक है दिल्ली का केन्द्र शासित क्षेत्र. दूसरा है एनसीटी यानी नेशनल कैपिटल टैरीटरी. यह दिल्ली शहर की भौगोलिक सीमा है. तीसरा है एनसीआर नेशनल कैपिटल रीजन. इसके अंतर्गत पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और राजस्थान के कुछ इलाके एनसीआर में शामिल किए गए हैं. सन 1962 में जब दिल्ली का पहला मास्टर प्लान जारी हो रहा था तब इसकी अवधारणा तैयार की गई थी. इसका उद्देश्य था कि दिल्ली के इर्द-गिर्द शहरीकरण किया जाए ताकि दिल्ली पर दबाव न पड़े. इस समय एनसीआर क्षेत्र की 2करोड़ 21 लाख के ऊपर है. सन 1985 में नेशनल कैपिटल रीजन प्लानिंग बोर्ड अधिनियम पास किया गया, जिसके तहत इसे कानूनी रूप दिया गया. 

ईरानी कप का इतिहास बताएं. यह किस खेल से जुड़ी है?

जिसे पहले ईरानी ट्रॉफी कहा जाता था अब ईरानी कप है. रणजी ट्रॉफी की विजेता टीम और शेष भारत की टीम के बीच मैच के विजेता को यह कप मिलता है. इसका पहला मैच सन 1959-60 में रणजी ट्रॉफी के 25 साल पूरे होने पर हुआ था. यह प्रतियोगिता बीसीसीआई के पूर्व पदाधिकारी ज़ाल ईरानी के नाम पर शुरू हुई थी, जो सन 1928 में बीसीसीआई की स्थापना से लेकर 1970 में निधन होने तक इससे जुड़े रहे. शुरूआत में यह मैच भारतीय क्रिकेट सीज़न के अंत में खेला जाता था, पर सन 1965-66 से सीज़न की शुरूआत ईरानी कप से होने लगी. पर सन 2013 से यह मैच रणजी ट्रॉफी के फाइनल के फौरन बाद होने लगा है. यानी अब यह फिर से सीजन के अंत में होने लगा है. सन 2014-15 में इस कप को कर्नाटक की टीम ने जीता.

स्ट्रीट लाइट की परम्परा कब और कहाँ शुरू हुई?

स्ट्रीट लाइट की ज़रूरत शहरों के विकास के साथ महसूस हुई होगी. यूरोप में ग्रीक और रोमन शहरों में मशालों और लैम्पों की मदद से सड़कों पर रोशनी की गई. पुराने जमाने के मिट्टी के बने लैम्प भी मिलते हैं.

सबसे पहले थिएटर की शुरूआत कहाँ हुई? नाटक और नौटंकी में फर्क क्या है?

दुनिया में रंगमंच का इतिहास लगभग उतना पुराना है जितनी पुरानी सभ्यता है. गीत, संगीत और अभिनय के संयोग से बनी इस सम्पूर्ण कला में साहित्य का योगदान भी था. यूरोप में यूनान के नगर राज्यों में ऐसे रंगमंच बनाए गए, जिनमें सैकड़ों-हजारों दर्शक बैठ सकते थे. प्राचीन रोम में भी रंगमंच की परम्परा थी. प्राचीन भारत में संस्कृत के नाटक लिखे और खेले गए. भरत मुनि का नाट्यशास्त्र इसका उदाहरण है कि रंगमंच को हमारे पूर्वजों ने कला के रूप में विकसित किया. नाटक और नौटंकी के फर्क केवल शैली का फर्क है. नाटक खेलने की अनेक शैलियाँ हैं. भारतीय मंच की लोक कलाओं में कुछ हैं स्वांग, यक्षगान, भवाई, छऊ, भांड, कथाकली, रासलीला, रामलीला और नौटंकी वगैरह. देश में उन्नीसवीं सदी के अंत में और बीसवीं सदी के शुरू में पारसी थिएटर के नाम से आधुनिक शैली के नाटक शुरू हुए.

प्रभात खबर अवसर में प्रकाशित

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